Saturday, October 22, 2011

एक खोज


खोजता रहा तुझे मैं हर जानिब 
कभी उजालों में 
कभी सिआहियों में
नजाने कहाँ थी तू अब तक
पर चलता गया मैं, उन पगों पर
उस खोज पर 

गिरा जब हर ठोकर पर मैं
ना थामा तुने मेरा हाथ
उठ खड़ा हुआ मैं
चेहरे पर थी बस एक मुस्कराहट 
चल पड़ा मैं दोबारा, उन पगों पर
उस खोज पर

मंजिल थी अभी दूर 
और राहें कठिन 
कुछ भी रोक ना पाया मुझको 
दृढ था मेरा संकल्प 
के चलता रहूँगा, उन पगों पर
उस खोज पर

चलता जा रहा था मैं
पर अचानक थम गया, और देखा जब मैंने
इल्म हुआ मुझे 
खोज रहा था नाजाने कहाँ-कहाँ तुझे
ऐ ज़िन्दगी; थी तू मेरे साथ ही 
चलती जा रही थी साथ मेरे
देती सीख मुझे
हर राह पर, हर मोड़ पर
बढाती मेरी हिम्मत

देखा जब मैंने तुझे
और भी दृढ हो उठा संकल्प मेरा 
मिल गयी एक नई खोज मुझे 
खोज मेरे अस्तित्व की
खोज मेरी पहचान की
खोज एक नई सीख की
चल पड़ा दोबारा, मुसकुराता हुआ मैं
उन पगों पर, उस खोज पर |
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